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भगवद गीता कोट्स इन संस्कृत अर्थ सहित

भगवद गीता भारतीय साहित्य और आध्यात्मिक धारा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इस ग्रंथ में विभिन्न प्रकार के आध्यात्मिक ज्ञान, धर्म, कर्म, और मानव जीवन के महत्वपूर्ण पहलुओं का संवाद है। भगवद गीता के शिक्षाएँ हमें सही दिशा में चलने के लिए मार्गदर्शन प्रदान करती हैं और आध्यात्मिक जागरूकता को बढ़ावा देती हैं। आइए, हम इस लेख में भगवद गीता के कुछ महत्वपूर्ण कोट्स के साथ इस महाग्रंथ के महत्व को समझें।

भगवद गीता के कोट्स इन संस्कृत हिंदी अर्थ सहित

अर्जुन उवाच: करपण्यदोषोपहतस्वभावः पृच्छामि त्वां धर्मसम्मूढचेताः।अर्जुन ने कहा: अपने कर्मों में फंसे हुए और धर्म से मोहित हुए मैं आपसे पूछता हूँ।
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।जब-जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब मैं अपने रूप में प्रकट होता हूँ
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।कर्मों में ही आपका कर्तव्य है, फलों की चिंता मत करो।
योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय।हे धनंजय! योग में स्थित रहकर कर्म करो, संग को त्यागकर।
दूरेण ह्यवरं कर्म बुद्धियोगाद्धनञ्जय |हे धनंजय! बुद्धियोग से दूरस्थ कर्म बेहतर है।
तस्मादसक्तः सततं कार्यं कर्म समाचर।आसक्ति के बिना सदैव कर्म करो और कर्म में लग जाओ।
यदा संख्यैर्निर्माणे च कर्मणि गा रजस्य यायौ।जब कर्मों के संख्या में वृद्धि और रजोगुण की बढ़ोतरी होती है, तब आध्यात्मिक मार्ग छोड़ जाता है।
कायेन मनसा बुद्ध्या केवलैरिन्द्रियैरपि।शरीर, मन, और बुद्धि के द्वारा कर्म करो, इंद्रियों के बिना।
न द्वेष्ट्यकुशलं कर्म कुशले नानुशज्जते।कुशल कर्मों को कोई नहीं द्वेष करता, अकुशल में भी कोई अनुशासन नहीं रखता।
यज्ञार्थात्कर्मणोऽन्यत्र लोकोऽयं कर्मबंधनः।यज्ञ के लिए किए जाने वाले कर्मों में नहीं, अन्यत्र इस लोक में कर्मबंधन है।
कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धरः।वहाँ जहाँ योगेश्वर कृष्ण और पार्थ कुंडली धारी हैं
आपूर्यमाणमचलप्रतिष्ठं समुद्रमापः प्रविशन्ति यद्वत्।जैसे जल अपनी स्थिति को अचल और प्रतिष्ठित रूप से भरता है
अहं कृत्स्नस्य जगतः प्रभवः प्रलयस्तथा।मैं ही सम्पूर्ण जगत का उत्पत्ति स्थान और समापन हूँ।
देहिनोऽस्मिन्यथा देहे कौमारं यौवनं जरा।इस देही में शरीर के कौमार्य, यौवन, और वृद्धि का नाश होता है।
अव्यक्तोऽक्षर इत्युक्तस्तमाहुः परमां गतिम्।अव्यक्त और अक्षर को ही परम गति कहा गया है।
यं हि न व्यथयन्त्येते पुरुषं पुरुषर्षभ।जिन पुरुषों को ये जीवनी प्रक्रियाएँ नहीं व्यथित करतीं, वे वास्तविक मानव हैं।
तद्विद्धि प्रणिपातेन परिप्रश्नेन सेवया।उसे जानने के लिए प्रणाम, परिप्रश्न, और सेवा के साथ जानो।
दैवी सम्पद्विमोक्षाय निबन्धायासुरी मता।दैवी गुणों से मोक्ष होता है, और असुरी गुणों से बंधन होता है।
विद्याविनयसम्पन्ने ब्राह्मणे गवि हस्तिनि।जिस ब्राह्मण में विद्या और विनय हो, उसमें गौ में और हाथियों में भी यही गुण होते हैं।
अहिंसा सत्यमस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रहः।अहिंसा, सत्य, चोरी नहीं करना, शुद्धि, और इंद्रियों का निग्रह यह श्रेष्ठ धर्म हैं।
दुःखेष्वनुद्विग्नमना सुखेषु विगतस्पृहः।दुखों में आसक्ति नहीं और सुखों में उत्साह नहीं रखने वाला मनवाला होता है।
योगसंन्यस्तकर्माणं तं कारणमुच्यते।कर्मों को त्यागकर योग में रमने वाले को योगी कहा जाता है।
प्रकृतेर्गुणसम्मूढाः सज्जन्ते गुणकर्मसु।प्रकृति के गुणों में मोहित होकर लोग गुणों के अनुसार कर्म करते हैं।
ब्रह्मार्पणं ब्रह्म हविः ब्रह्माग्नौ ब्रह्मणा हुतम्।यज्ञकुंड में आग को ब्रह्म समझकर आर्पण करना ब्रह्म की यज्ञ होती है।
यत्र नान्यत्पश्यति लोको यत्र चैन्द्रियक्रियाः।जिस योगी को इस जगत में कुछ भी अलग नहीं दिखाई देता और जिसके इंद्रियों का निग्रह होता है,
स्वाधर्ममपि चावेक्ष्य न विकम्पितुमर्हसि।अपने स्वधर्म को देखकर भी तुम्हें विकम्पन करने का कोई आवश्यकता नहीं है।
यत्र योगेश्वरः कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धरः।ही जगह जहाँ योगेश्वर कृष्ण और पार्थ धनुर्धारी हैं,
तस्य नाहं सुखं प्राप्य स्थितिं प्राप्य चामीमृतम्।नके पास पहुँचकर मुझे सुख और इस जीवन की परिपूर्ण स्थिति प्राप्त नहीं होती।
अपि चेदसि पापेभ्यः सर्वेभ्यः पापकृत्तमः।अगर तुम पापों के बावजूद पाप करने वालों में से भी पापकृत्तम हो,
भगवद गीता के कोट्स इन संस्कृत हिंदी अर्थ सहित

 

निष्कर्षण

भगवद गीता भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और यह आध्यात्मिक जीवन के मार्ग का मार्गदर्शन करती है। यहाँ हमने महत्वपूर्ण भगवद गीता के कोट्स को संस्कृत और हिंदी में प्रस्तुत किया है, जो हमें धार्मिकता, कर्म, और आध्यात्मिक जीवन के प्रति अधिक जागरूक बनाते हैं। ये उपदेश हमें सही मार्ग पर चलने की मार्गदर्शन करते हैं और जीवन के विभिन्न पहलुओं को समझाने में मदद करते हैं।


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