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50 Heart Touching भगवत गीता के अनमोल वचन

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भगवद गीता, भारतीय साहित्य और धर्मग्रंथ का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो महाभारत के भीष्म पर्व में संवाद के रूप में प्रस्तुत है। इसमें भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को जीवन के महत्वपूर्ण मुद्दों पर समझाते हैं और मानव जीवन के विभिन्न पहलुओं का मार्गदर्शन करते हैं। भगवद गीता के अनमोल वचन मानवता के लिए एक प्रेरणास्त्रोत हैं जो हमें जीवन को सही दिशा में देखने और समझने की मार्गदर्शन करते हैं। यहां हमने 50 भगवद गीता के अनमोल वचन प्रस्तुत किए हैं जो हमें जीवन के महत्वपूर्ण प्रिंसिपल्स की ओर मोड़ने में मदद कर सकते हैं।

भगवद गीता में सुने गए 50 अनमोल वचन

कर्म करो, फल की चिंता मत करो।

आपके कर्म ही आपकी पहचान होते हैं।

किसी के द्वारा किये गए अच्छे कर्मों को नहीं छोड़ना चाहिए।

अपने कर्मों को भगवान के लिए करो।

जीवन में सफल होने के लिए अपने कर्मों को समर्पित करो।

धर्म का पालन करो, सफलता आपके पास आएगी।

किसी के दुःख में सहानुभूति दिखाओ।

आपके कर्मों का परिणाम आपके स्वाधर्म में ही मिलेगा।

अध्यात्मिक ज्ञान का पालन करो।

ध्यान के माध्यम से अपने आप को जानो।

ध्यान में स्थिर रहो और शांति पाओ।

जीवन में सफल होने के लिए अपने कर्मों को समर्पित करो।

धर्म का पालन करो, सफलता आपके पास आएगी।

आपके कर्मों का परिणाम आपके स्वाधर्म में ही मिलेगा।

आपके कर्म ही आपकी पहचान होते हैं।

दुःख में भी आत्मा को न सम्पल न सम्पृक्त करो, सुख में भी न सम्पल न सम्पृक्त करो।

किसी के प्रति आत्मनिवेदन करो, वही वास्तविक धर्म है।

।अपने कर्मों को योग के रूप में करो और उनका आनंद लो।

कर्म में लिपटे रहो, लेकिन फल की आकांक्षा न करो।

अपने मन को शांति में रखो और चिंता को दूर भगाओ।

जीवन के हर पल को जीने का सौभाग्य प्राप्त करो।

जो आपको बदल नहीं सकता, वह केवल आपके कर्म हैं।

आपके मन को संयमित रखो और अपने इंद्रियों का नियंत्रण करो।

अपने आप को अपने कर्म से मत जोड़ो, यह आपके कर्म की महत्वपूर्ण भूल है।

किसी के प्रति प्यार और दया दिखाओ, यह आत्मा के उन्नति का मार्ग है।

आपके मन को शांति में रखो और अपने आत्मा की गहराईयों को जानो।

दूसरों के दुखों को समझने की कोशिश करो और सहानुभूति दिखाओ।

आपके मन को शांति में रखो और अपने आत्मा की गहराईयों को जानो।

दूसरों के दुखों को समझने की कोशिश करो और सहानुभूति दिखाओ।

समस्याओं को निरंतर अवसर में देखो और सीखो।

जो कुछ भी आपका है, वह ईश्वर का आपको उपहार है।

आत्मा को नित्य और अविनाशी मानो, यह सच है।

जीवन को सरलता से जियो और अपने कर्मों में निष्काम रहो।

सभी जीवों के प्रति समभाव और सहानुभूति दिखाओ।

अपने आप को समर्पित करो और भगवान के प्रति विश्वास रखो।

अपने कर्मों में समर्पण और उनमें अच्छाई डूबो।

जीवन के अच्छे और बुरे दिनों को स्वागत करो, क्योंकि वे गुजर जाते हैं।

आत्मा की आंखों से अपने कर्मों को देखो और सच्चाई का पालन करो।

कर्मों के माध्यम से आपके आत्मा को ऊंचा उठाओ।

आत्मा को निरंतर शुद्ध रखो और दुखों को नष्ट करो।

जीवन के संघर्षों को साहस से और संतुलन से पार करो।

किसी के साथ न्याय करो और उनकी आवश्यकताओं को पूरा करने में सहायता करो।

अपने धर्म का पालन करो और सत्य के प्रति प्रतिबद्ध रहो।

अपने आप को जीतने और दूसरों के लिए काम करने का उद्देश्य बनाओ।

आत्मा को अपने अंदर के शांति और आनंद की ओर देखो।

जीवन को एक यात्रा मानो और अपने कर्मों का सही दिशा में उपयोग करो।

अपने आप को निर्मल और सच्चे भावनाओं से भरो।

कर्म करते समय आत्मा को परमात्मा में समर्पित करो।

जीवन को आत्मा के उन्नति के लिए एक मौका मानो और समर्पण से रहो।

आपके कर्मों का फल तभी मिलता है जब आप उन्हें निष्काम भाव से करते हैं।

आपके कर्मों का सफलता से कोई संबंध नहीं होता, आपके धर्म के साथ होता है।

कर्म को पूरी ईमानदारी से करो और उसका परिणाम भगवान के हाथ में छोड़ दो।

जीवन को आत्मा के उन्नति का मार्ग मानो और सदैव प्रयत्नशील रहो।

आत्मा को मोह से मुक्ति पाओ और अच्छे गुणों का पालन करो।

सच्चे प्यार में आत्मा को पाओ और दूसरों के प्रति सच्ची भावनाओं को समझो।”

अपने कर्मों को भगवान के लिए और सेवा के भाव से करो।

जीवन को एक दिया की तरह जलाओ और अपने परिस्थितियों को प्रकाशित करो।

निष्कर्षण

भगवद गीता के अनमोल वचन हमें जीवन के विभिन्न पहलुओं को समझने और सही मार्ग पर चलने के लिए मार्गदर्शन करते हैं। ये वचन हमारे धार्मिक और आध्यात्मिक जीवन को सुधारने में मदद करते हैं और हमें समय के साथ बेहतर और समझदार व्यक्ति बनने की दिशा में मार्गदर्शन करते हैं। भगवद गीता का संदेश है कि हमें कर्म करने का अधिकार है, लेकिन हमें फल की चिंता नहीं करनी चाहिए। हमें अपने कर्मों को ईश्वर के लिए समर्पित करना चाहिए और सबके प्रति सहानुभूति और न्याय की भावना रखनी चाहिए। इन अनमोल वचनों का पालन करके हम अपने जीवन को एक सफल और सुखमय जीवन बना सकते हैं।

FAQ

गीता के अनुसार, मनुष्य को कर्म करना चाहिए, लेकिन फल की आकांक्षा नहीं करनी चाहिए और आत्मा को भगवान में समर्पित रहना चाहिए।

गीता में सबसे महत्वपूर्ण श्लोक माना जाता है, "कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।" (अध्याय 2, श्लोक 47)

भगवत गीता के अनुसार, जीवन का मुख्य उद्देश्य आत्मा की उन्नति और भगवान के साथ एकता प्राप्त करना है।

गीता में कहा गया है कि भाग्य केवल कर्मों का परिणाम नहीं होता, बल्कि आत्मा के कर्मों और उनके भावनाओं के साथ जुड़ा होता है।

गीता में मन को चंचल और विचारों का अधिकारी माना गया है, और यह मन को कैसे नियंत्रित किया जा सकता है, इसके उपाय दिए गए हैं।

गीता के अनुसार, मन को काबू में करने के लिए ध्यान, अभ्यास, और साधना की आवश्यकता है। इसके अलावा, कर्मयोग के माध्यम से कर्म करना और भगवान के प्रति भक्ति रखना भी मन को नियंत्रित करने में मदद करता है।

गीता के अनुसार, आपका कर्तव्य आपके धर्म के पालन करना है, और यह धर्म आपके समाज, परिवार, और आत्मा के प्रति होने चाहिए।

गीता में पाप केवल पांच प्रकार के होते हैं - अहिंसा की अव्यवस्था, सत्य का अल्पकारी त्याग, चोरी, अदर्शन, और दुष्कृत कर्म का परम द्वेष।

गीता में 10 प्रकार के पाप के उदाहरण दिए गए हैं - क्रोध, काम, क्रोध, लोभ, मोह, माद, मात्सर्य, दुराचार, दुर्भावना, और अद्भूतकर्म।

हिंदू धर्म में चार प्रमुख पाप हैं - ब्रह्महत्या (व्यक्ति की हत्या), सौम्यदर्शन (सत्य की उल्लंघन), स्त्रीसंग्रह (दूसरी स्त्री के प्रति लोभ), और अघोरी (मृत्यु के पश्चात्ताप।)

गीता में कहा गया है कि जब तक एक व्यक्ति अपने कर्मों को सच्चाई और सात्त्विक भावनाओं के साथ करता है, तब तक पाप नहीं लगता।

गीता के अनुसार, मनुष्य का पहला कर्तव्य अपने धर्म का पालन करना है और सच्चाई के प्रति निष्ठा रखना है।

सबसे बड़ा कर्तव्य मनुष्य का है अपने कर्मों का निष्काम भाव से करना और भगवान के प्रति पूर्ण समर्पण रखना।


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